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नई तकनीक का डर और उसकी राजनीति

30 नवंबर, 2022 को चैटजीपीटी (ChatGPT) लॉन्च किया गया और लॉन्च के बाद से ही यह कंप्यूटर प्रौद्योगिकी दुनिया में होने वाली हर महत्वपूर्ण चर्चा के केंद्र में है। हालाँकि 'ऑटोमैटिक कोड कम्पलीशन' जैसी सुविधाएँ किसी भी आई.डी.ई (Integrated Development Environment) में पहले से ही मौजूद थीं लेकिन तकनीकी प्रश्नों के सटीक और आसानी से समझे जाने योग्य संवादात्मक जवाब देने वाला ऐसा कोई भी सॉफ्टवेयर बाजार में मौजूद नहीं था। इसने गूगल सर्च जिसमें अभी तक हमें सही उत्तर खोजने के लिए कई पृष्ठों पर नजर डालनी पड़ती थी, से भी कहीं आसान विकल्प प्रदान कर दिया है। यहां आप ऐप में प्रश्न का विवरण डालते हैं और ऐप कुछ ही क्षणों में स्टैटिस्टिकल मॉडल्स की मदद से अधिकतर मामलों में ठीक ठीक जवाब देता है जिससे कई पुराने काम कॉपी-एंड-पेस्ट की प्रक्रिया बन कर रह गए हैं। तब से अब तक इस तरह के कई अन्य उत्पाद कमोबेश समान क्षमताओं का दावा करते हुए बाजार में आ चुके हैं। इस दौड़ में माइक्रोसॉफ्ट, अमेजॉन, गूगल, बाइडू जैसे बड़े टेक कारपोरेशन अपने-अपने सॉफ्टवेयर के साथ बाजार में आ चुके हैं। हालाँकि एक ऐसे सॉफ्टवेयर सिस्टम की अवधारणा जो बिग डाटा और मशीन लर्निंग के आधार पर सवालों के सटीक जवाब दे सकती हो, नयी नहीं है। आईबीएम का 'वाटसन प्रोजेक्ट' 2005 में शुरू हुआ था और आज इसका उपयोग डॉक्टरों और नर्सों की सहायता के लिए स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में किया जा रहा है। लेकिन ओपनएआई के सॉफ्टवेयर चैटजीपीटी (ChatGPT) ने इस प्रौद्योगिकी को आम उपभोक्ता तक पंहुचा दिया है और यही कारण है कि ChatGPT के यूजर बेस में विस्फोटक वृद्धि देखी गयी। UBS विश्लेषकों के शोध के अनुसार ChatGPT संभवतः इंटरनेट इतिहास में सबसे तेजी से बढ़ने वाला ऐप है।
प्रश्नों के उत्तर में दोषरहित वाक्य रचने की कंप्यूटर प्रणालियों की क्षमता, निर्देशों और वाक्यों के आधार पर त्वरित छवि और ध्वनि की रचना और अनेक क्षेत्रों में उनके संभावित प्रयोग को देखने के बाद वैज्ञानिकों और इंजीनियरों और इस तकनीक के मालिक पूंजीपतियों द्वारा कई तरह की चिंताएँ उठाई गई हैं। मोटे तौर पर इन चिंताओं को दो श्रेणियों में रखा जा सकता है। पहली, एक दिन ए.आई. (कृत्रिम बुद्धि) सिस्टम इतने उन्नत हो जाएंगे कि वे मानव जाति को गुलाम बना लेंगे और हमारे जीवन के अस्तित्व की शर्तों को निर्धारित और निर्देशित करेंगे जैसा कि साई-फाई (वैज्ञानिक कल्पनाजगत आधारित) फिल्मों और उपन्यासों में विभिन्न रूपों में हम देखते हैं। दूसरी चिंता यह है कि यह नई तकनीक हमारे काम करने के पुराने तरीके को बाधित कर देगी, श्रम बाजार पर नकारात्मक प्रभाव डालेगी, कई प्रकार की नौकरियां जिन्हें अब तक सफेदपोश माना जाता था, सदा के लिए खत्म कर देगी और मशीन अंततः मनुष्यों की जगह ले लेगी। हाल ही में 30 मई, 2023 को 'सेंटर फॉर एआई सेफ्टी' की वेबसाइट पर जनता के नाम एक वाक्य का खुला पत्र प्रकाशित किया गया। पत्र में लिखा गया कि "अन्य वैश्विक सामाजिक स्तर की समस्याओं जैसे महामारी और परमाणु युद्ध की जोखिम के साथ-साथ एआई के कारण मानव जाति के विलुप्त होने के खतरे से लड़ना भी वैश्विक स्तर पर हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।" इस पत्र पर ओपनएआई और गूगल डीपमाइंड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सैम ऑल्टमैन और डेमिस हसाबिस (क्रमशः) सहित सैकड़ों एआई वैज्ञानिकों, प्रोफेसरों, शोधकर्ताओं, तकनीकी कर्मियों और कंपनियों के सीईओ ने हस्ताक्षर किए हैं। जनता के नाम एक पत्र ? इन सबों में जनता की आखिर क्या हिस्सेदारी है? और क्या जनता इस तकनीक और इसके नीति निर्माण पर कोई ठोस प्रभाव डाल सकती है? यह बहस लगभग दस साल पहले सोशल मीडिया को लेकर चलने वाली बहस की याद दिलाती है। मजे की बात यह है कि जिन खतरों से हमें चेताया जा रहा है वो भी सोशल मीडिया से जुड़े खतरों से मिलते जुलते ही लगते हैं। सेंटर फॉर एआई सेफ्टी के अनुसार एआई सिस्टम से जुड़े प्रमुख जोखिमों में नफरत फैलाना, पूर्वाग्रह को बनाए रखना, गलत सूचना को बढ़ावा देना, स्वायत्त-स्वचालित हथियारों का गलत इस्तेमाल, और साइबर हमला करना शामिल हैं। वेबसाइट पर सूचीबद्ध जोखिमों में प्रमुख हैंः
  • एआई सिस्टम का शस्त्रीकरण (weaponization) और इसका दुरूपयोग, स्वायत्त हथियारों का इस्तेमाल अथवा जैव हथियार बनाने के लिए इस्तेमाल ।
  • अफवाहों, भ्रामक और गलत सूचनाओं का प्रचार।
  • दोषपूर्ण उद्देश्यों के साथ प्रशिक्षित एआई सिस्टम द्वारा व्यक्तिगत और सामाजिक मूल्यों को अनदेखा कर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ना।
  • महत्वपूर्ण कार्यों के तेजी से मशीनों को सौंपे जाने के कारण शारीरिक अक्षमता का होना, मानवता का स्वशासन की क्षमता खोकर पूरी तरह से मशीनों पर आश्रित हो जाना।
  • अत्यधिक सक्षम अत्याधुनिक तकनीक और प्रौद्योगिकी लोगों के छोटे समूहों के बीच केंद्रित होकर उन लोगों को जबरदस्त ताकत का मालिक बना सकती हैं जिसका उपयोग वो दूसरों के शोषण और दमन के लिए कर सकते हैं।
  • जैसे-जैसे सांख्यिकी पर आधारित एआई मॉडल अधिक सक्षम होते जाते हैं वैसे वैसे वे अप्रत्याशित और गुणात्मक रूप से भिन्न व्यवहार प्रदर्शित करने लगते हैं। क्षमताओं या लक्ष्यों के अचानक उभरने से यह जोखिम बढ़ सकता है और लोग उन्नत एआई सिस्टम पर नियंत्रण खो सकते हैं।
  • हमें यह जानकारी होनी चाहिए कि शक्तिशाली एआई सिस्टम क्या कर रहे हैं और वे जो कर रहे हैं वह क्यों कर रहे हैं। क्योंकि भ्रामक होना विभिन्न लक्ष्यों को पूरा करने के लिए लाभदायक है, इसीलिए भविष्य की एआई प्रणालियाँ भ्रामक हो सकती हैं क्योंकि धोखे से एजेंटों को अपने लक्ष्य हासिल करने में मदद मिल सकती है। वैध तरीके से मानवीय स्वीकृति प्राप्त करने की तुलना में धोखे के माध्यम से मानवीय स्वीकृति प्राप्त करना अधिक सुविधाजनक हो सकता है। मजबूत एआई जो इंसानों को धोखा दे सकते हैं, इंसान के नियंत्रण को कमजोर कर सकते हैं।
  • कंपनियों और सरकारों के पास ऐसे एजेंट बनाने के लिए मजबूत आर्थिक प्रोत्साहन हैं जो व्यापक लक्ष्यों को पूरा कर सकते हैं। ऐसे एजेंटों के पास सत्ता हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण प्रोत्साहन होंगे, जिसके चलते संभावित रूप से उन्हें नियंत्रित करना कठिन हो जाता है।
यह समझना बहुत कठिन नहीं है कि लगभग सभी आशंकाएं सीधे-सीधे उत्पादन की पूंजीवादी प्रणाली और इसके तहत बनने वाले मालिकाना सम्बंधों के चलते ही हैं। जब ये कॉरपोरेट सोशल मीडिया पर गलत सूचना, फर्जी समाचार और पक्षपातपूर्ण जानकारी को रोकने में न केवल असमर्थ रहे बल्कि अपने निजी मुनाफे के लिए उन्होंने इन सबों का भरपूर इस्तेमाल किया, तो हम यह कैसे मान सकते हैं कि एआई सिस्टम का उपयोग उनके द्वारा पहले की ही तरह अपने वित्तीय, राजनीतिक और वैचारिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए नहीं होगा? यह सर्वविदित है कि बड़े-बड़े तकनीकी कारपोरेशन भी उसी पूंजीवादी बाजार का हिस्सा हैं जिसके मीडिया और अखबारों का एकमात्र कार्य मालिकों के व्यावसायिक हित को बढ़ावा देना है न कि "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या विरोध करने के अधिकार की रक्षा करना। ट्विटर के भूतपूर्व सीईओ जैक डोर्सी ने हाल में ही दिए एक साक्षात्कार में साफ-साफ बताया कि उनकी कंपनी ने किसान आंदोलन के दौरान राजनैतिक कार्यकर्ताओं, किसान नेताओं, आन्दोलनकारियों और छात्रों के ट्विटर खातों को भारत सरकार की धमकियों के दबाव में आकर ब्लॉक किया था। फेसबुक कर्मचारियों द्वारा बार-बार किए गए खुलासों में किसी भी पोस्ट को ब्लॉक करने या बढ़ावा देने पर फेसबुक की दक्षिणपंथी, जन-विरोधी और फासीवाद-समर्थक नीतियों के बारे में पता चलता है। पूँजीपति वर्ग और मौजूदा जनतंत्र के बीच सदा से चले आ रहे गठजोड़ के मद्देनजर इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि चैटजीपीटी के सीईओ सैम ऑल्टमैन का दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्षों द्वारा स्वागत किया जा रहा है। साई-फाई फिल्मों और उपन्यासों में मशीनों द्वारा हमें गुलाम बनाये जाने के जो दृश्य दिखाए जाते हैं वह दूर की कौड़ी है। मशीन लर्निंग और सांख्यिकीय मॉडलों द्वारा सक्षम एआई विशिष्ट संकीर्ण कार्यों को करने में बेहद कुशल है। लेकिन जब उन कार्यों की बात आती है जो ठीक से परिभाषित नहीं हैं अथवा अस्पष्ट हैं तब एआई सिस्टम को मानव बौद्धिक एवं तार्किक क्षमता के करीब पहुंचने के लिए अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। हमारी कल्पनाओं में मशीनरी द्वारा हमारी गुलामी का मतलब है कि रोबोटों की फौज एक दिन कोड़े मारते हुए हमें जेल या लेबर कैंप में भेजने लगेंगे। इस बचकानी कल्पना के विपरीत मशीनों की गुलामी आज व्यवहार में है।
पूंजीवादी व्यवस्था में यह केवल मजदूर वर्ग की गुलामी ही नहीं बन कर आती है इसके और भी रूप हैं। हम पाते हैं कि रोज ही ऑनलाइन ठगी, हेरफेर, अफवाह, फेक न्यूज और महत्वपूर्ण सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर हमारी गलत और पूंजी परस्त उदार या घोर दक्षिणपंथी राय बनाने के माध्यम के रूप में यह सामने आती है। हम इसे सोशल मीडिया ऐप्स के प्रसार के साथ विकराल रूप धारण करते देख सकते हैं। फेसबुक के शुरुआती निवेशकों और कर्मचारियों द्वारा फेसबुक को "वैश्विक स्तर पर लोकतंत्र के लिए खतरा" बताया गया है। और कंपनी बार-बार किसी भी तरह के कानूनी नियामक बनाने के प्रयासों के खिलाफ लड़ती आयी है। अब विशेषज्ञ एआई (कृत्रिम बुद्धि) प्रौद्योगिकी के दुरुपयोग को रोकने के लिए नियमों की मांग कर रहे हैं। कंप्यूटर विज्ञान के विकास के इतिहास ने हमें दिखाया है कि प्रौद्योगिकी बाजार में पहुंचते समय चाहे कितनी भी क्रांतिकारी और मानवता की भलाई करने वाली क्यों न लगे का इस्तेमाल हमेशा पूंजी के हितों से ही प्रेरित होता है और इसका उपयोग अधिक से अधिक लाभ कमाने और मजदूरों की संख्या कम करने के उद्देश्य से ही किया जाता है। यह निश्चित है कि एआई, मशीन लर्निंग, ऑटोमेशन जैसी नई प्रौद्योगिकियां कॉपी राइटर, कंटेंट राइटर, ग्राफिक डिजाइनर, आदि जैसी पारंपरिक नौकरियों को बहुत बड़ी संख्या में मिटा देंगी। विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) की एक अप्रैल की रिपोर्ट के अनुसार अकेले अगले पांच वर्षों में लगभग 1.4 करोड़ पद गायब हो सकते हैं और वित्तीय संस्था गोल्डमैन सैक्स के अनुमान के अनुसार दुनिया भर में लगभग 30 करोड़ पूर्णकालिक नौकरियां अंततः किसी न किसी तरह से जेनरेटिव एआई द्वारा स्वचालित की जा सकती हैं। हम पहले ही ग्राहक सेवा प्रतिनिधियों का अंत देख चुके हैं। अब ग्राहक सेवा के मामलों को मुख्य रूप से चैटबॉट्स द्वारा नियंत्रित किया जाता है, चैट ही नहीं फोन कॉल का उत्तर भी बॉट्स द्वारा दिया जाता है। जब बॉट समस्या को हल करने में सफल नहीं होते तब ही हमें किसी मानव से बात करने का मौका मिलता है। ये ऐसे कार्य हैं जहां एआई की भूमिका बढ़ेगी और यह एक बड़ी संख्या में श्रमिकों को बेरोजगारी की ओर धकेल देगी।
उद्योग जगत के नेता अक्सर नई प्रकार की नौकरियों का प्रचार करते हैं जो निश्चित रूप से स्तरीय तकनीकी नौकरियां हैं। लेकिन वो ये तथ्य छिपाते हैं कि पारंपरिक नौकरियों की तुलना में इन नौकरियों की संख्या बहुत कम होगी। मुनाफा कमाना ही पूंजीपतियों का ध्येय है और इसके लिए वे निरंतर मशीनीकरण करते रहते हैं। लंबे समय से इंटरनेट आधारित सॉफ्टवेयर उद्योगों में काम करने वाले लोग इस बात के गवाह हैं कि जिस काम को करने के लिए आम तौर पर पांच से सात श्रमिकों की जरुरत होती थी उसके लिए अब एक या दो की ही जरूरत पड़ती है। वही व्यक्ति जो अब कोड लिखता है वही डिजाइन बना सकता है, उन डिजाइनों को वायरफ्रेम में कोड कर सकता है, बिज़नेस लॉजिक जोड़ सकता है, डेटाबेस डिजाइन कर सकता है और इसे सर्वर पर डाल सकता है। पहले ये सभी कार्य अलग-अलग भूमिकाएँ थे और इन्हें करने के लिए अलग-अलग श्रमिकों की आवश्यकता होती थी। पूंजी के शासन के तहत हर नयी तकनीक श्रम बाजार में उथल-पुथल मचाने के लिए बाध्य है। ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि श्रमिक अपना कौशल बढ़ाने में असमर्थ है, बल्कि इसलिए है क्योंकि नई तकनीक का एकमात्र उद्देश्य पूंजीपतियों के लाभ को बढ़ाना है। एआई को विनियमित करने की मांग पूंजीवादी व्यवस्था के बुर्जुआ लोकतंत्र के तहत 'नियमन' की किसी भी अन्य मांग की तरह ही सतही है, जबकि सिस्टम के मूल में पनप रही समस्या को इस तरह नजरअंदाज कर दिया जाता है जैसे कि यह अस्तित्वहीन ही है।
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