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2025 बिहार चुनाव - जनतंत्र की रक्षा या निरंकुश, फासीवादी ताकतों को बढ़ावा?

2025 बिहार चुनाव -- जनतंत्र की रक्षा या निरंकुश, फासीवादी ताकतों को बढ़ावा? असली मुद्दा यही है
जनतंत्र की जीत सुनिश्चित करें, भाजपा गठबंधन की हार सुनिश्चित करें, जनसंघर्षों की जमीन की रक्षा करें
बिहार में चुनाव है, नीतीश कुमार है, तोहफों की बहार है। खजाना खोल दिया गया है? चुनाव से ठीक पहले इस
भाजपा-जदयू सरकार को याद आयी कि वृद्धावस्था पेंशन मात्र 400 रु॰ है, इतनी कम रकम चुनाव प्रचार में नहीं जमेगी, अतः एकाएक इसे दुगुने से ज्यादा कर दिया गया और टीवी पर टारगेट कर बूढे-़बुज़ुर्गों को रिझाया जाने लगा। फिर लगा कि महिलाओं को तो संस्थाओं से लिये गये छोटे कर्ज के जाल में फांस रखा गया है तो क्यों न इसका थोड़ा-बहुत निवारण एक समय के लिए 10000 रुपये देकर कर लिया जाए? कुछ तो खजाने में सीधे वापस आ ही जायेगा और वोट भी मिल जायेगा। अमित शाह ने कहा कि महिलाएं इससे कारोबार चला सकती हैं । एक तरफ कर्ज लेकर डूबते कारोबार हैं और दूसरी ओर कर्ज के जाल में फंसे लोग? ऐसे में कहते हो कारोबार के लिए है। क्या मज़ाक है। वोट झटकने के लिए दे रहे हो घूस और कहते हो कारोबार के लिए। और सरकारी स्कीम में  काम करने वाली महिलाओं को क्या सौगात दी गयी? अपना वेतन बढ़ाने के लिए बार-बार पटना में आकर आंदोलन करने वाली इन बहनों को पुलिस-लाठी की सौगात मिलती रही है। अभी उनका भी ख्याल आ गया। अपनी नैया डूबती देख नीतीश सरकार ने आशा वर्करों, आंगनबाड़ी सेविकाओं से लेकर रसोइयों तक के वेतन बढ़ा दिये। डूबती नीतीश सरकार को आखिर सरकारी खजाने का सहारा है न! दूसरे दल की सरकारों द्वारा दी जाने वालीं मुफ्त बिजली और शिक्षा को बदनाम कर रेवड़ी बांटना कह मजाक उड़ाने वाली नरेन्द्र मोदीनीत डबल इंजन सरकार ने यहां भी जनता को रिझाने के लिए पहले ही इंतजाम कर दिया है। क्या स्कीम कर्मचारियों को उचित वेतन मिलता है? नहीं। यही बात है। जिन्दगी में ठोस फर्क लाने वाले रोजगार का अभाव है। शिक्षा का अभाव है और गरीब घरों के बच्चों के लिए यह इतनी महंगी हो गई है कि वे गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा से वंचित रहने को मजबूर हैं। चुनावी आचार संहिता के लागू होने से पहले अचानक दी गयीं ऐसी सौगातें वोट के लिये घूस ही कहलायेंगी। इससे जनता को मूर्ख बनाने की कोशिश हो रही है लेकिन बिहार की सचेत जनता अपना दूरगामी हित जानती है। वह जानती है कि दावा जताकर हक मांगने पर पुलिसिया दमन चलानेवाली सरकार इतनी मेहरबान क्यों हो रही है। यह मुंहबंदी का प्रयास है लेकिन जनता बोलकर रहेगी। वोट से भी बोलेगी और आंदोलन से भी इस जनविरोधी सरकार को जवाब देगी । 
बिहार में बढ़ते निरंकुश शासन के तहत अफसरशाही का बोलबाला है जिससे जनता त्रस्त है। जनता की आवाज़ों को रौंदा जा रहा है। आरटीआई या सूचना के अधिकार को लगातार कमजोर कर भ्रष्ट व निकम्मी अफसरशाही के लिये सुरक्षा कवच बना दिया गया है। ऐसे ही कई कदम उठाये गये हैं। मसलन, निर्माण मजदूरों के कल्याण मद के लाभार्थियों के नाम पहले नेट पर सबके सामने रहते थे। इसमें पारदर्शिता घटी है। भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा गैर-मजदूरों के नाम पर पैसे की निकासी को सुलभ बनाया गया है। भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है। विकास के नमूने पुल, सड़क, आदि ढह रहे हैं, धंस रहे हैं। निम्न कोटि का काम होता है। पंचायत से लेकर राज्य सरकार के स्तर तक भ्रष्टाचार का आलम देखने को मिल रहा है। ‘‘डबल इंजन’’ सरकार ने तो अपने काम-काज को जनता की किसी तरह की निगरानी से मुक्त करने का काम किया है। क्या जनता की संस्थागत हकमारी को ही जनतत्रं कहते हैं? 
बिहार चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भविष्य की राजनीति को तय करने का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। पिछले ग्यारह सालों में जिस तरह से तमाम जनतांत्रिक अधिकारों पर प्रहार हुआ है और जनतांत्रिक प्रक्रियाओं को खोखला बना दिया गया है वह यही दिखाता है कि यह चुनाव भाजपा बनाम जनतंत्र का मामला बन गया है। यह निरंकुशतावादी, फासीवादी शक्तियों के बढ़ते रथ को रोकने का एक पड़ाव है। भाजपा के पितृ संगठन आरएसएस के प्रेरणास्रोत मुसोलिनी और हिटलर जैसे भयंकर तानाशाही चलाने वाले लोग रहे हैं। हम देख सकते हैं कि साम्प्रदायिक राजनीति का इस्तेमाल कर जनता को बरगलाने वाली यह पार्टी धर्म का इस्तेमाल कर राज्य का चरित्र भी बदलने की योजना रखती है इसीलिए वह हिन्दू राष्ट्र की बात करती है। कोई भी धर्म राज्य जनतांत्रिक नहीं होता चाहे हिन्दू राष्ट्र हो या इस्लामी। हम सऊदी अरब के धर्म राष्ट्र को देख सकते हैं। यह तो गौर करने वाली बात है कि जो अंग्रेज़ों के राज से आजादी के लिए नहीं लड़े वे जनता की आजादी के पक्षधर कैसे होंगे? आरएसएस-भाजपा धुर दक्षिणपंथी हैं जो बराबरी, जाति उन्मलू न और मेहनतकशों के संघर्षों के पक्षधर नहीं रहे हैं। वे पाखंडी, पोंगापंथी व रूढ़िवादी हैं और हमारे समाज के हर नासूर के पक्षधर हैं चाहे वह जाति व्यवस्था हो, औरतों की गुलामी हो या फिर सामाजिक-आर्थिक गैर-बराबरी। वे राजे-रजवाड़े से लेकर पूंजीपतियों के पक्षधर रहे हैं और उनके हितों की पैरोकारी करते रहे हैं। इसीलिए मज़दूरों-किसानों और उत्पीड़ित जातियों के संघर्षों में उनकी भागीदारी नहीं होती रही है। प्रधान मंत्री ने जनांदोलनों का मजाक उड़ाते हुए उसके नेतृत्व करने वालों को आंदोलनजीवी कह डाला। जनता अपने हक-हकूक के लिए संघर्ष करती है और जनतंत्र का मतलब उसके लिये यह है कि वह अपने हितों के लिए संघर्ष कर सके। प्रधान मंत्री इसी का विरोध कर रहे थे जब वे यह फब्ती कस रहे थे। जनता के लिए यह बहुत बड़े खतरे के रूप में है। 
जनतत्रं के ऐसे दुश्मनों को जनता के कल्याण से क्या लेना देना? इसीलिए हम पाते हैं कि उनकी सारी नीतियां और सारे कानून जनता को अधिकारविहीन करते हैं और मेहनतकशों की स्थिति को बदतर बनाते हैं। तभी तो देश में आज अभूतपूर्व बेरोजगारी का आलम है और युवा पीढ़ी को अवसरों से वंचित रहना पड़ रहा है। और याद रहे कि बिहार की बेरोजगारी तो सबसे ज्यादा है। बेराजगारी की समस्या पर नीतीश कुमार की एनडीए सरकार ने वादा के अलावा किसी तरह का ठोस प्लान नहीं बनाया है। और इनके वादे कितने खोखले होते हैं उसे हम देख सकते हैं। नीतीश सरकार ने बहुत पहले ही भूमिहीनों को 5 डिसमिल बासगीत जमीन देने का वादा किया था लेकिन आज तक वह पूरा नहीं हुआ है। उल्टे ताजा भूमि सर्वेक्षण के दौरान उनके पुश्तैनी बासगीत हक पर ही सवालिया निशान खड़ा हो गया। दूसरी ओर पूंजीपतियों की गुलामी करने वाली इस सरकार ने अडानी को मात्र एक रुपये प्रति वर्ष की लीज़ रकम पर करीब 1020 एकड़ उर्वर जमीन दे दी है। गरीबों को अतिक्रमण हटाने के नाम पर उजाड़ा जाए, उनके लिए वादे की बासगीत जमीन न दी जाए लेकिन अडानी के लिए मुफ्त जमीन। बक्सर में अपनी जमीन के जबरन अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों पर बर्बर दमन चला। यह है राज्य का पूंजीपक्षीय चेहरा। और रोजगार योजनाओं पर इनका रूख देखिए। मनरेगा में वास्तविक राशि घट गई है। दूसरी ओर यह भ्रष्टाचार का जरिया बन गया है। बेरोजगारी से राहत का यह कदम भी इन्हें रास नहीं आ रहा। बेरोजगारी का आलम ऐसा कि हमारे गांव युवाविहीन होते जा रहे हैं। बेरोजगारी अपने घरों से बेघर होने वाले मज़दूरों-मेहनतकशों  की आपबीती है। लेकिन सरकार निश्चिन्त दिखती है। मज़दूरों-मेहनतकशों  के प्रति ऐसा रूख केवल एक जनविरोधी सरकार ही ले सकती है। दूसरी ओर हम परीक्षार्थी छात्रों-युवाओं के आंदोलन, अग्निवीर विरोधी आंदोलन का उग्र तेवर देख सकते हैं। यह दिखाता है कि जनता चुप नहीं बैठनेवाली है। जनतंत्र में जनता को इन अत्याचारों और शोषण के खिलाफ आवाज उठाने की जमीन रहती है। जनांदोलन करने की इस जमीन को आज खत्म किया जा रहा है। हमें वोट देते समय इसी के प्रति सचेत रहना चाहिए। क्या हम नीतीश-मोदी की डबल इंजन सरकार पर भरोसा कर सकते हैं? जनतत्रं में  सरकार पर सवाल उठाने और जनसंघर्ष की स्थिति बनी रहती है जिसे खत्मप्राय कर दिया गया है। आज यदि हम अपने अस्तित्व की लड़ाई को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो हमें इस सरकार को शिकस्त देनी ही होगी। हम जानते हैं कि हमारा मुकाम, एक शोषणविहीन समाज का मुकाम जनसंघर्षों  की राह से हासिल होगा और फासीवाद से जंग हम उसी रास्ते जीतेंगे हम जानते हैं कि यह सड़ी-गली पूंजीवादी व्यवस्था ही हमारी दुःस्थिति के लिए जिम्मेवार है। उसके खिलाफ हमें जंग लड़नी है। लेकिन अभी घड़ी है वोट दे कर अपना तीखा विरोध जताने की। तो आइए, भाजपानीत एनडीए के खिलाफ वोट करें और इसे सबक सिखाएं। उसे बताना है कि तुम धर्म की कितनी भी अफीम पिलाओ, साम्प्रदायिकता की धुंध में असली मुद्दों को कितना भी गायब करो हम पर्दे के पीछे के तुम्हारे असली चहरे को पहचानते हैं यह असली चेहरा है हमारे अस्तित्व को बदरगं करनेवाले का, बेरोजगारी में  धकेली गई हमारी भावी पीढ़ी को निठल्ला बनानेवाले का और उन लुटेरों के हाथों हमें सौंप देनेवाले का जिनकी तिजोरियों में  हमारी मेहनत का फल यानी सारा धन जा रहा है। हम नागरिक के तौर पर, हम मजदूर-मेहनतकश किसान के तौर पर वोट देंगे। अपने खत्म होते अधिकारों के मुद्दे पर वोट देंगे और नरक होती जिन्दगी के खिलाफ वोट देंगे। भाजपा गठबंधन को एक भी वोट नहीं यही हमारा नारा है। हाल ही में हमने देखा कि किस तरह से विशेष पुनरीक्षण (एसआईआर) के द्वारा लोगों को मताधिकार से वंचित किया गया। पहले जनता सरकार को चुनती थी अब सरकार ने ही जनता चुनना शुरू कर दिया है। हमारे जनतत्रं के लिए यह एक गम्भीर खतरा है। वोट चोरी से लेकर वोटर लिस्ट में हेराफेरी इनके असली मकसद को दिखाते हैं कि वास्तविक जनतांत्रिक प्रक्रियाओं को यह सत्ता की खातिर खत्म करने पर तुली हुई है। 
फिर किसको वोट दें यह प्रश्न हमारे सामने मुंह बाये खड़ा है। हमारे सामने तमाम पूंजीवादी पार्टियां ही हैं जो भाजपा गठबंधन को हरा सकती हैं। हम जानते हैं इनका चरित्र, तथापि यह भी सही है कि ये फासीवादी पार्टियां नहीं हैं। इनके पास वर्तमान संवैधानिक व्यवस्था की जगह पर हिन्दू राष्ट्र बनाने का कोई एजेण्डा नहीं है। भाजपा की तरह ये संविधान द्वारा दिये गयेहर अधिकार को खत्म करने पर नहीं तुली रहती हैं। इनके पास बड़े पूंजीपतियों के पक्ष में काम करने की वह उग्र राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है जो फासीवादी विचारधारावाली पार्टी भाजपा के पास है और जिसका उसने विगत ग्यारह सालों में प्रदर्शन भी किया है। हम जानते हैं कि मजदूरों को, मेहनतकश किसानों व वंचित समुदायों को अपनी समस्यायें हल करने के लिए सड़क पर आना पड़ता है क्योंकि उन्हीं का शोषण-उत्पीड़न होता है, उन्हें ही अन्याय और तरह-तरह की प्रवंचनाओं के खिलाफ लड़ना पड़ता है। बीडीओ ऑफिस से लेकर राजधानी में विरोध प्रदर्शन कर अपनी आवाज बुलंद करनी होती है। और आज इस सब पर रोक लग रही है। कानूनन रैली से लेकर प्रदर्शन करना तक कठिन हो गया है, मजदूरों के यूनियन बनाने के अधिकार से लेकर हड़ताल करने पर कानूनी अड़चन थोप दिये गये हैं। जननेताओं पर फर्जी मुकदमे चलाये जाते हैं। विश्वविद्यालय में छात्रों के विचार मंथन पर भी रोक लगाये जाते हैं। गुंडा वाहिनियों का हमला होता है और पुलिस देखती  रह जाती है। विरोध-प्रतिरोध करने की स्थिति बनी रहे, मजदूरों-मेहनतकश किसानों और उत्पीड़ितों के संघर्ष के लिए जगह बनी रहे इसके लिए इस जनतंत्र का महत्व है। इस मुकाम पर निर्णयात्मक कदम उठाते हुए जनतंत्रविरोधी शक्ति भाजपा को चुनाव मे हराने वाले कारगर गठबंधन यानी महागठबंधन को वोट दें और उसके उम्मीदवार को विजयी बनायें 
निवेदक - ग्रामीण मज़दूर यूनियन, बिहार
इंकलाबी निर्माण कामगार यूनियन, बिहार
Grameen Mazdoor Union
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