Cover Image for मई दिवस का है पैगाम, जारी रखना है संग्राम

मई दिवस का है पैगाम, जारी रखना है संग्राम

दोस्तो,
मई दिवस के मौके पर हम आपके बीच कुछ महत्वपूर्ण बातों को रखना चाहते हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि मई दिवस 1 मई को मनाया जाता है और इसे मज़दूर दिवस कहा जाता है। यह एक वैसा दिन है जब हम अपनी थाती पर नजर डालते हैं, अपनी गौरवशाली विरासत को संजोने की बात करते हैं। आज जब हम 21वीं सदी में खड़े होकर इस विरासत पर नजर डालते हैं तो रोमांच से भर जाते हैं और सहम भी जाते हैं। इसलिए हम सहम जाते हैं कि हमने इस विरासत की आत्मा को भुलाप्राय दिया है। हमारे पूर्वज एक नये वर्ग के रूप में अपने को संगठित करते हुए, क्रांतिकारी आंदोलनों से पूँजी की सत्ता को चुनौती देते हुए आगे बढ़े थे। मई दिवस की यादें हमें बताती हैं कि मजदूर वर्ग का अगर एक रक्तरंजित काल रहा है तो युगांतरकारी विजयों का भी काल रहा है। चाय के ब्रेक से लेकर राज्य सत्ता तक के प्रश्न पर तीखी लड़ाईयां हुई हैं और मजदूर वर्ग के नेतृत्व में दुनिया के एक बड़े भाग में  मज़दूरों का क्रांतिकारी राज स्थापित हुआ है। मई दिवस के दिन हम दुनिया भर के मजदरू आंदोलनों को सलाम करते हैं और हाल ही में  हुये मारुति मज़दूरों तथा सैमसंग मज़दूरों के उल्लेखनीय संघर्षों के साथ सभी बड़े-छोटे मजदूर संघर्षों को सलाम करते हैं। इन संघर्षों के  जज्बात ने दिखा दिया कि इस गिरावट के काल में भी पूँजी को चुनौती दी जा सकती है और जीत हासिल की जा सकती है।
मई दिवस काम के घंटों को कम करने के साथ जुड़ा हुआ रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका में 19वीं सदी में मज़दूरों  के लम्बे कार्यदिवस के खिलाफ 8 घंटे के कार्यदिवस के लिए हडत़ालों का तांता लग गया। 1886 में इसने अपना सबसे तीखा रूप शिकागो शहर में अख्तियार किया। वहां हड़ताल अभूतपूर्व रही और मजदूर लगातार अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करते रहे। 4 मई को मजदूरों पर हो रहे दमन के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले मजदूरों पर पूंजीपतियों की शह पर पुलिस द्वारा गोली चलाई गई और इस हिंसा में चार मजदूरों की मौतें भी हुईं। मई दिवस का संघर्ष त्याग और बलिदान का संघर्ष रहा है। इसने विश्व पैमाने पर रंग लाया और 8 घंटे का कार्यदिवस अंततः विश्व पैमाने पर मान्य हुआ। संयुक्त राज्य अमेरिका के एक शहर में हुये संघर्ष विश्वस्तर पर छा गये और मई का पहला दिन मज़दूरों के नाम हो गया।
इस सिलसिले में  मजदूर वर्ग  के विश्वस्तरीय राजनीतिक अग्रणी संगठनों के योगदान को यदि हम भुला दें तो ऐसा करके हम बहुत बड़ी भूल करेंगे। पूंजीवादी शोषण पर लगाम लगाने वाली आठ घंटे की मांग मजदूर वर्ग के विश्वस्तरीय संगठन अंतराष्ट्रीय कामगार संगठन ने उठाया और इस पर प्रस्तावें पारित कर इसके लिए संघर्ष का आह्वान किया। इस संगठन के भंग होने के बाद बना दूसरे अंतराष्ट्रीय संगठन ने 1889 में सम्पन्न अपने पहले सम्मेलन में प्रस्ताव पारित किया कि 1 मई मज़दूरों  के इस संघर्ष के नाम हो और तब से दुनिया भर में 1 मई मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। एक देश के कुछ शहरों में होने वाले संघर्ष का किस कदर विश्वव्यापी छाप पड़ती है वह हम देख सकते हैं। मजदूरों के संघर्ष व आंदोलन जब मजदूर वर्गीय विचारधारा पर बने राजनीतिक सगंठन से जुडत़े हैं तो वे एक नया आयाम ले लेते हैं। वे मजदूर वर्ग की राजनीतिक दावेदारी व उसकी मुक्ति तक जुड़ जाते हैं। काश? हम जब पीछे मुड़ कर देखते हैं तो हम पाते हैं कि हम किस कदर अपने विरासत से कट गये हैं। आठ घंटे का कार्यदिवस आज 21वीं सदी में क्या सचमुच लागू किया जा रहा है? 19वीं सदी में हासिल मांग आज किस स्थिति में है? कमरतोड़ काम के घंटे के बोझ के भुक्तभोगी हर मज़दूर को सोचना चाहिए कि हम किस कदर पीछे धकेल दिये गये हैं। आज पूंजी पति वर्ग के लिए काम कर रही सरकार ने हमारे संघर्षों से जीते हुये हर काननू को खत्म कर पूंजीपति वर्ग के हित में कानून लाया है जिसे श्रम संहिता या लेबर कोड कहा जाता है। मजदूरों के हित में बनने वाले कानूनों के पीछे संघर्षों की कहानी है, शहादतों की कहानी है। क्या हम अपने ही इतिहास को भुला देंगे? इस मई दिवस को हमें इसे याद करना चाहिये और संकल्प लेना चाहिये कि हमारी दूसरी गुलामी का आगाज करने वाले इन कानूनों के खिलाफ हम कड़ा प्रतिरोध खड़ा करेंगे ! 
कैसी स्थिति में आज हम पहुंच गये हैं कि पूरी हेकड़ी के साथ पूंजीपति मजदूरों को सप्ताह में 100 घंटे तक काम करवाने की बात कर रहे हैं। यदि हम अब भी नहीं चेते तो फिर हमारे साथ पशुवत व्यवहार ही होगा। मई दिवस की लड़ाई की मांग ‘आठ घंटे काम, आठ घंटे मनोरंजन और आठ घंटे आराम’ का रहा है। मानव होने का मतलब ही है कि खेल से लेकर दूसरे मनोरंजन का समय मिले, पढ़ने का समय मिले स्वास्थ्यकर जीवन के लिये सही आराम मिले और अव्वल तो यह कि अपनी भयानक स्थिति पर भी सोचने का समय मिले। क्या ऐसा हो रहा है? उल्टे पूंजीपति उग्रता के साथ हम पर हावी हैं और हम पीछे धकेले जा रहे हैं। ऐसे में हमें संघर्ष की बात सोचनी ही पड़ेगी और संघर्ष करने के लिए संगठन बनाना पड़ेगा। आज के दिन यह संकल्प लेने की जरूरत है कि हमें अब उठ खड़ा होना है, पूंजीपति वर्ग के हमले का सामना करना है। हम गुलाम की गजालतभरी जिंदगी कब तक जियेंगे यह हमारी मानव गरिमा की बात है और उससे भी ज्यादा हमारे अस्तित्व मात्र की बात है। किस कदर हमारा अस्तित्व ही खतरे में पड़ा हुआ है। भयंकर बेरोजगारी की मार और मजदूरी ऐसी कि मानव जिंदगी जीने नहीं दे सकती। अकेला मजदूर सोच सकता है कि इस बेरोजगारी की मार से हमें  क्या लेना। लेकिन  हमारे वर्ग के दूसरे सदस्यों की बदहाली हमारे लिये भी काल बन कर आती है। मजदूरी घटाने और कमरतोड़े मेहनत करवाने में बेरोजगार मजदूरों की फौज की क्या भूमिका है यह हम जानते हैं। ये सारे सवाल मजदूर वर्ग के सवाल हैं और इन्हें हम अपनी दुःस्थिति के बीने पर ही नजरअंदाज कर सकते हैं। यदि हम गुलामी की स्थिति झेल रहे हैं तो यह हमारे आंदोलन के पीछे जाने का ही परिणाम है।
मजदूरों को अपनी विरासत से फिर से जुड़ना है। यह काम कठिन है लेकिन यह समय की पुकार है। पूरे विश्व में पूंजीपति वर्ग की नृशंस राजनीतिक शक्तियां हावी हो रही हैं और भारत इसका अपवाद नहीं है। ये पूंजी के हित को निर्ममतापूर्वक लागू करने वाले लोग हैं। वे मेहनतकशों के कट्टर दुश्मन हैं। भारत में  लागू होने वाले लेबर कोड इसी का नमूना है और यह एक भयंकर हमला है। जब मजदूरों की स्थिति बदतर हो रही है तो उन्हें इसका संज्ञान लेने से भटकाने के लिए तरह-तरह की साजिश होती है। साम्प्रदायिक तत्व ऐसा जहर उगलते हैं कि मानो गरीबों-मेहनतकशों का पूरा अस्तित्व धार्मिक कर्मकांडों पर निर्भर है? वे धर्म खतरे में  है का नारा लगाते हैं और इस तरह नारा देते हैं कि गर्व से कहो हम हिंदू हैं! हम कहते हैं कि गर्व से कहो हम मजदूर हैं? हम ही सभी चीजों के निर्माता हैं। हमारे पूरे अस्तित्व में धार्मिक क्रियाकलाप ना के बराबर भूमिका अदा करते है। हमारे वास्तविक जीवन में हमारा मज़दूर होना ही प्रमुख चीज है। एक मज़दूर के रूप में सोचने पर हम भ्रातृघातक कदमों का समर्थन नहीं कर सकते। यह धार्मिक उन्माद हमारे अस्तित्व की लड़ाई पर, हमारे शोषण पर और दमन पर पर्दा डालकर पूंजीपतियों के हितों को आगे बढ़ाता है। इनकी नीति भेदभाव पर निर्भर है चाहे वह धार्मिक हो या जातीय। हमारी नीति एकता के पक्ष को उभारता है और मजदूर वर्ग की एकता की बात करता है।
साथियो, हम एक संगीन समय में जी रहे हैं। स्थिति इतनी बुरी हो रही है कि इस मई दिवस के अवसर पर हमें  सोचना पड़ेगा कि हम पुरानी दुनिया को वापस लाना चाहते हैं, हमारे हुक्मरानों के लिए सोने की दुनिया जिसमें अबाध शोषण चलता था उसे चाहते हैं या फिर हम नई दुनिया बनाना चाहते हैं। हम पूंजी के जुए को उखाड़ फेंकना चाहते हैं या फिर नारकीय जिंदगी जीना चाहते हैं। हमारे शासकों ने हमारे लिए प्रश्न को साफ कर दिया है। वे अबाध शोषण चाहते हैं और उसके लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। वे निर्ममता से हमारे सारे जनतांत्रिक अधिकारों को समाप्त कर रहे हैं। समय है उठ खड़े होने का। समय है तय करने का कि हमारी भावी पीढी़ , हमारे बाल-बच्चे दंगाई बनेंगे या विवेकवान नागरिक, वे नशाखोर बनेंगे या कर्मठ जीवन जियेंगे, वे बेरोजगार व निकम्मा बनेंगे या मेहनत करनेवाले। 
ये सारे प्रश्न हैं हमारे सामने जो पूंजी  के हमले के प्रतिरोध की मांग करते हैं। और आर्थिक ही नहीं, राजनीतिक प्रतिरोध की मांग करते हैं। ये पूंजी  की सत्ता को चुनौती की मांग करते हैं। हमें चुनना पड़ेगा एक खुदमुख्तारी की दुनिया, मजदूर राज की दुनिया जैसी हमारे पूवर्जों ने चुनी थी और समाजवाद की स्थापना की थी या फिर एक गुलामी की दुनिया। मई दिवस का पैगाम हमें संघर्ष करने को कहता है और संगठन बनाने के महत्व को भी दिखाता है। आखिर मजदूर वर्गीय संगठन ही थे जिन्होंने एक शहर, एक देश के संघर्ष को पूरी दुनिया के लिए पैमाना स्थापित करने वाला बना दिया। तो आइए, हमारे संगठन से जुड़िये और संघर्ष को आगे बढ़ाइए। हम मांग करते हैं –
1 काम के वास्तविक घंटे 8 करो और उसी हिसाब से मजदूरी तय करो
2 सभी मजदूरों के लिए पी॰एफ॰, ई॰एस॰आई॰ सुविधा व पेंशन की व्यवस्था करो
3 न्यनू तम मजदूरी 30,000 रुपये महीना करो
4 स्थायी काम करनेवाले को परमानेन्ट करो
5 मजदूर विरोधी चारांे लेबर कोड रद्द करो
इंकलाबी सलाम के साथ -
मजदूर चेतना केन्द्र, दिल्ली
पीएसवाईए, दिल्ली
PSYA
PSYA

Related Posts

Cover Image for चुनाव आयोग का गुणा गणित, जनता की फ़ज़ीहत

चुनाव आयोग का गुणा गणित, जनता की फ़ज़ीहत

ऐसे फैसलों के चलते जनता को बार-बार आपात स्थिति से जूझना पड़ता है। महाराष्ट्र की घटनाओं को देखते हुए शक और सवाल सिर्फ वैध मतदाताओं के नाम काटे जाने का नहीं बल्कि अवैध मतदाताओं के जोड़े जाने का भी है।

मज़दूर
मज़दूर
Cover Image for From Bathani Tola to Bathe

Editorial
From Bathani Tola to Bathe

History today poses this tricky question before us — the task of separating the interests of the working class and the petty bourgeoisie, which appears interwoven in the assertion of the rural oppressed.

Proletarian Path
Proletarian Path